प्राणायाम का योग में महत्व

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वर्तमान समय में अपनी व्यस्त जीवन शैली कारण लोग संतोष पाने के लिए योग करते हैं। योग से न व्यक्ति का तनाव दूर होता है बल्कि मन और मस्तिष्क को भी शांति मिलती है।योग बहुत ही लाभकारी है। योग न केवल हमारे दिमाग, मस्‍तिष्‍क को ही ताकत पहुंचाता है बल्कि हमारी आत्‍मा को भी शुद्ध करता है। आज बहुत से लोग मोटापे से परेशान हैं, उनके लिए योगा बहुत ही फायदेमंद है। योग के फायदे से आज सभी जानते है, जिस वजह से आज योग विदेशों में भी प्रसिद्ध है।

सावधानियाँ- 


  • सबसे पहले तीन बातों की आवश्यकता है, विश्वास, सत्यभावना, दृढ़ता।
  • प्राणायाम करने से पहले हमारा शरीर अन्दर से और बाहर से शुद्ध होना चाहिए।
  • बैठने के लिए नीचे अर्थात भूमि पर आसन बिछाना चाहिए।
  • बैठते समय हमारी रीढ़ की हड्डियाँ एक पंक्ति में अर्थात सीधी होनी चाहिए।
  • सुखासन, सिद्धासन, पद्मासन, वज्रासन किसी भी आसन में बैठें, मगर जिसमें आप अधिक देर बैठ सकते हैं, उसी आसन में बैठें।
  • प्राणायाम करते समय हमारे हाथों को ज्ञान या किसी अन्य मुद्रा में होनी चाहिए।
  • प्राणायाम करते समय हमारे शरीर में कहीं भी किसी प्रकार का तनाव नहीं होना चाहिए, यदि तनाव में प्राणायाम करेंगे तो उसका लाभ नहीं मिलेगा।
  • प्राणायाम करते समय अपनी शक्ति का अतिक्रमण ना करें।
  • ह्‍र साँस का आना जाना बिलकुल आराम से होना चाहिए।
  • जिन लोगो को उच्च रक्त-चाप की शिकायत है, उन्हें अपना रक्त-चाप साधारण होने के बाद धीमी गतिसे प्राणायाम करना चाहिये।
  • यदि आँप्रेशन हुआ हो तो, छः महीने बाद ही प्राणायाम का धीरे धीरे अभ्यास करें।
  • हर साँस के आने जाने के साथ मन ही मन में ओम् का जाप करने से आपको आध्यात्मिक एवं शारीरिक लाभ मिलेगा और प्राणायाम का लाभ दुगुना होगा।
  • साँसे लेते समय किसी एक चक्र पर ध्यान केंन्द्रित होना चाहिये नहीं तो मन कहीं भटक जायेगा, क्योंकि मन बहुत चंचल होता है।
  • साँसे लेते समय मन ही मन भगवान से प्रार्थना करनी है कि "हमारे शरीर के सारे रोग शरीर से बाहरनिकाल दें और हमारे शरीर में सारे ब्रह्मांड की सारी ऊर्जा, ओज, तेजस्विता हमारे शरीर में डाल दें"।
  • ऐसा नहीं है कि केवल बीमार लोगों को ही प्राणायाम करना चाहिए, यदि बीमार नहीं भी हैं तो सदा निरोगी रहने की प्रार्थना के साथ प्राणायाम करें।
प्राणायाम करते समय तीन तरह की क्रियाएं पूरक, कुम्भक और रेचक करते है| अर्थात साँस लेना, रोकना और छोड़ना। 


पूरक


  • नियंत्रित गति से साँस अंदर लेने की क्रिया को पूरक कहते हैं। श्वास धीरे-धीरे या तेजी से दोनों ही तरीके से खिंचते हैं तो उसमें लय और अनुपात का होना आवश्यक है।


कुम्भक



  • अंदर ली गयी साँस को अपनी क्षमतानुसार रोकर रखने की क्रिया को कुम्भक कहा जाता है| साँस अंदर रोकने की क्रिया को आंतरिक कुम्भक तथा साँस बहार छोड़कर कुछ देर रुकने की क्रिया को बाहरी कुम्भक कहते है|

रेचक


  • अंदर ली हुई साँस को नियंत्रित गति से छोड़ने की क्रिया को रेचक कहते हैं। साँस को धीरे-धीरे या तेजी से दोनों ही तरीके से जब छोड़ते हैं तो उसमें लय और अनुपात का होना बहुत ही आवश्यक है।

लाभ -

  • मोटापा, डायबेटीज, कॉलेस्ट्रॉल, कब्ज, एसिडिटी, एलर्जी, माइग्रेन, हाई ब्लड प्रेशर, किडनी की समस्याएं, सेक्सुअल डिसऑर्डर इसके आलावा आपको बाल गिरने, बाल सफेद होने, चेहरे पर झुर्रियां, आंख की रोशनी में कमी, भूलने की बिमारी जैसी समस्याओं से भी निजात मिल जाएगी।

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