कभी फुर्सत हो तो जगदम्बें
14:42कभी फुर्सत हो तो जगदम्बें,
निर्धन के घर भी आ जाना |
कभी फुर्सत हो तो जगदम्बें,
निर्धन के घर भी आ जाना |
जो रुखा सूखा दिया हमें,
कभी उसका भोग लगा जाना ||
ना छत्र बना सका सोने का,
ना चुनरी घर में तारों जडी |
ना पेडे बर्फी मेवा हैं माँ,
बस श्रद्धा है नैन बिछाये खडी |
इस श्रद्धा की रख लो लाज हे माँ,
इस अर्जी को ना ठुकरा जाना ||
जो रुखा सूखा दिया हमें......
जिस घर के दिये में तेल नहीं,
वहाँ ज्योत जलाऊ मैं कैसे |
मेरा खुद ही बिछौना धरती पर,
तेरी चौकी सजाऊ मैं कैसे |
जहाँ मै बैठा वही बैठ के माँ,
बच्चों का दिल बहला जाना ||
जो रुखा सूखा दिया हमें......
तू भाग्य बनाने वाली है,
माँ मैं तकदीर का मारा हूँ |
हे दाती संभालो को भिखारी को,
आखिर तेरी आखँ का तारा हूँ |
मैं दोषी तू निर्दोष हैं माँ,
मेरे दोषो को तू भुला जाना ||
जो रुखा सूखा दिया हमें......
कभी फुर्सत हो तो जगदम्बें,
निर्धन के घर भी आजा ना |
जो रुखा सूखा दिया हमें,
कभी उसका भोग लगा जाना |
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